हौसलों की उड़ान: भारत की पहली नेत्रहीन IAS अफसर, जिन्होंने न कभी हार मानी न उम्मीद छोड़ी

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Inspirational Story Of Ias Pranjal Patil

हाल ही में देश की पहली नेत्रहीन महिला आईएएस प्रांजल पाटिल ने सोमवार को तिरुवनंतपुरम में सब कलेक्‍टर का पद ग्रहण किया। जिसने साबित कर दिया, कि इंसान में अगर चाह हो तो यंहा सब कुछ मुमकिन है। पाटिल की दृष्टि जन्‍म से ही कमजोर थीं, लेकिन छह वर्ष की उम्र में उनकी दृष्टि पूरी तरह से खत्‍म हो गई। लेकिन उन्‍होंने अपनी हिम्‍मत नहीं हारी और जीवन में कुछ करने की लगन लेकर वे आगे बढ़ती रहीं। आज महाराष्‍ट्र के उल्‍हासनगर की निवासी प्रांजल केरल कैडर में नियुक्‍त होने वाली पहली दृष्टि बाधित आईएएस अफसर हैं।

उन्‍होंने अपने पहले ही प्रयास में यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में 773वां रैंक हासिल किया है। इस मौके पर प्रांजल ने कहा कि मुझे जिम्मेदारी संभालते हुए बहुत अच्छा लग रहा है। मैं अपने काम के दौरान जिले को ज्यादा जानने की कोशिश करूंगी और इसकी बेहतरी के लिए योजना बनाऊंगी। इसके साथ ही वह उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गईं, जो किस्मत को दोष देने की वजाए अपनी ज़िंदगी बनाने में विश्वास रखते हैं। अगर हौसला हो तो हर उड़ान मुमकिन है। ये साबित किया है प्रांजल ने।

6 साल में खो दी थी आंख

पाटिल की दृष्टि जन्‍म से ही कमजोर थी, लेकिन छह साल की उम्र में उनकी दृष्टि पूरी तरह से ख़त्म हो गई। प्रांजल जब सिर्फ छह साल की थी जब उनके एक सहपाठी ने उनकी एक आंख में पेंसिंल मारकर उन्हें घायल कर दिया था। उसके बाद प्रांजल की उस आंख की दृष्टि खराब हो गई थी। उस समय डॉक्टरों ने उनके माता-पिता को बताया था कि हो सकता है कि भविष्य में वे अपनी दूसरी आंख की दृष्टि भी खो दें और दुर्भाग्य से डॉक्टरों की बात सच साबित हुई। कुछ समय बाद प्रांजल की दोनों आंखों की दृष्टि चली गई।

लेकिन इससे प्रांजल ने हिम्‍मत नहीं हारी। जीवन में कुछ करने की लगन थी। प्रांजल आगे बढ़ती रहीं। प्रांजल के माता-पिता ने कभी भी उनकी नेत्रहीनता को उनकी शिक्षा के बीच आड़े नहीं आने दिया। उन्होंने मुंबई के दादर में स्थित नेत्रहीनों के स्कूल में प्रांजल का दाखिला कराया। प्रांजल ने 10वीं और 12वीं की परीक्षा भी बहुत अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की और 12वीं में चाँदीबाई कॉलेज में कला संकाय में प्रथम स्थान प्राप्त किया।

ग्रैजुएशन में आईएएस बनने की ठानी

प्रांजल की पढ़ाई मुबंई के दादर में श्रीमति कमला मेहता स्कूल से हुई। ये स्कूल प्रांजल जैसे खास बच्चों के लिए था। यहां पढ़ाई ब्रेल लिपि में होती थी। प्रांजल ने यहां से 10वीं तक की पढ़ाई की। फिर चंदाबाई कॉलेज से आर्ट्स में 12वीं की, जिसमें प्रांजल के 85 फीसदी अंक आए। बीए की पढ़ाई के लिए प्रांजल पहुंची मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज। जानकारी के मुताबिक ग्रेजुएशन के दौरान ही प्रांजल ने IAS बनने का प्लान किया और इसकी तैयारियों में लग गईं।

ग्रैजुएशन के दौरान प्रांजल और उनके एक दोस्त ने पहली दफा यूपीएससी के बारे में एक लेख पढ़ा। प्रांजल ने यूपीएससी की परीक्षा से संबंधित जानकारियां जुटानी शुरू कर दीं। उस वक्त प्रांजल ने किसी से जाहिर तो नहीं किया लेकिन मन ही मन आईएएस बनने की ठान ली। बीए करने के बाद वह दिल्ली पहुंचीं और जेएनयू से एमए किया। इस दौरान प्रांजल ने आंखों से अक्षम लोगों के लिए बने एक खास सॉफ्टवेयर जॉब ऐक्सेस विद स्पीच की मदद ली।

नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया

साल 2016 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास की, जिसमें उनकी 773वीं रैंक थी। 30 साल की प्रांजल ने 2017 में अपनी रैंक में सुधार किया और 124वीं रैंक हासिल की। फिर, ट्रेनिंग के बाद प्रांजल ने 2017 में केरल के एर्नाकुलम के असिस्टेंट कलेक्‍टर के रूप में अपने प्रशासनिक करियर की शुरुआत की। इस तरह अपने लगातार प्रयासों और अटूट विश्वास से उन्होंने अपनी किस्मत खुद लिख डाली। साथ ही लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गईं।

प्रांजल ने एक साक्षात्कार में बताया था कि ‘मैं हर रोज उल्हासनगर से सीएसटी जाया करती थी। सभी लोग मेरी मदद करते थे, कभी सड़क पार करने में, कभी ट्रेन मे चढ़ने में। बाकी कुछ लोग कहते थे कि मुझे उल्हासनगर के ही किसी कॉलेज में पढ़ना चाहिए पर मैं उनको सिर्फ इतना कहती कि मुझे इसी कॉलेज में पढ़ना है और मुझे हर रोज आने-जाने में कोई परेशानी नहीं है।’

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